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पूंजी क्या है, पूंजी की प्रक्रिया क्या है, पूंजी निर्माण की दर, भूमिका , महत्व



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पूंजी क्या है/ punji nirman kya hai

    जब किसी व्‍यक्ति द्वारा उपभोग को कम करके बचाया हुआ धन को उत्‍पादन की कार्यों में लगाया जाता है, जिससे बचाया हुआ धन से और अधिक धन को प्राप्‍त सके इस प्रक्रिया को पूॅजी निर्माण कहते है । 

प्रो. नर्क्‍से के अनुसार - पूॅजी निर्माण का अर्थ है कि समाज अपनी समस्‍त उत्‍पादन किया को उपभोग की वस्‍तुओं में ही नहीं लगाता, वरन उसके एक भाग को पूजीगत वस्‍तुओं, जिससे अन्‍तर्गत औजार एवं उपकरण मशीने व परिवहन सुविधाए एवं साज -सज्‍जा अर्थात समस्‍त प्रकार की वास्‍तविक पूॅजी आदि सभी को जोडकर पूजी निर्माण में लगाता है ।   

पूंजी की प्रक्रिया क्या है?/मानव पूंजी निर्माण की प्रक्रिया क्या है? / punji ka nirman hota hai

1 वास्‍तविक बचत का निमार्ण - 

जब कोई व्‍यक्ति द्वारा उपभोग में  होने वाले खर्च को कम करने की इच्‍छा तथा बचत करने की क्षमता होना जरूरी है, और इसमें जो बचने वाला धन को किसी ऐसे उत्‍पादन की कार्यों में प्रयोग किया जाता है जिससे अधिक धन कमाया जा सके । इस स्थिति को वास्‍तविक बचत का निर्माण कहा जाता है । 

2 धन की बचत को एकत्रीकरण -

धन को बचत का एकत्रीत करने वाले सस्‍था जैसे बैंकों बीमा कम्‍पनियों आदि के द्वारा एकत्रीत किया जाता है जिससे व्‍यक्ति को भविष्‍य में पूजी निर्माण में सहायक होता है । 

3 वास्‍तविक पूजीगत सम्‍पत्तियों में बदलना - 

जनता द्वारा बचत किया गया धन को और समूहो के माध्‍यम से लिया गया धन को एकत्रित करके उत्‍पादन कार्यों में विनियोग करना जिससे नई पूजी का निर्माण होता है । 

पूंजी निर्माण की दर/ punji nirman ki dar

1 बचत दर में पर्याप्‍त वृद्धि न होना -

भारत में आमदनी का स्‍तर बहुत नीचा है जिससे अधिकांश धन का उपभोग वह घरेलू सामग्री में निर्वाहन कर देता है जिसके चलते वह पूॅजी के निर्माण में वृद्धि नहीं हो पाती है । और जिसके पास कुछ अधक आमदनी होती है तो वह आरामदायक महगी वस्‍तुओं को खरीद कर नष्‍ट कर देता है ।

2 पर्याप्‍त वित्तिय संस्‍था का न होना -

भारत में कुछ ऐसे गाव है जहा पर यह सुविधा उपलब्‍ध नही की वह अपने बचत पूजी को संग्रहण कर सके और जहा पर यह संस्‍था उपलब्‍ध भी है तो बहुत दूरी पर है जिसके चलते वह अपनी पूजी का निर्माण करने में असमर्थ होते है । वित्तिय सस्‍ंथा जैसे बैंक, पोस्‍ट ऑफिस एवं अन्‍य ऐसे वित्‍तीय संस्‍था जिसमें धन का लेन- देन होता है यह सभी वित्‍तीय संस्‍था के अन्‍तर्गत आता है ।

3 कर प्रणाली में दोष -

भारत में कर प्रणाली में बहुत कमियॉ है जिससे काला धन को बढावा देते है। इसके अतिरिक्‍त जिस पर कर लगाना चाहिए उस पर नही लगाते बल्कि वहॉ पर लगाते जहा पर  आय की दर निम्‍न होती है । जबकि काफी ऐसे लोग है जिनके पास आय अधिक है । वर्तमान समय में ऐसे जगह पर आमदनी को खर्च किया जाता है जैस सोना चादि भू‍म‍ि आदि जिससे पूजी निर्माण का स्‍तर नीचा गिरा जा रहा है। 

 4 दोषपूर्ण नियोजन करना  -

भारत में ऐसे कार्य किये जाते है जिसकी प्रक्रीय दोषपूर्ण रही है । विकास करने के लिए कार्य तो किये जाते है लेकिन सभी जगह समान रूप से नही किया जाता है जिससे की कुछ ऐसे क्षेत्र होते है जहॉ पर कार्य को दर्शाया जाता है लेकिन वहॉ पर कार्य नही किया जाता है और वहॉ पर इसकी प्रक्रिया दोषपूर्ण रहती है ।        

5 उत्‍पादन निम्‍न होना  -

भारत में कृषि एवं उद्योग के में उत्‍पादन करने की क्षमता में काफी नीचे है । यहॉ पर उत्‍पादन तकनीकी उपकरण बहुत पुराने है । इसी के कारण यहा पर आमदानी का स्‍तर भी नही बढ़ पाया है । और बचत करने की क्षमता कम रह गयी है । जिसका पूजी निर्माण में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

आर्थिक विकास में पूंजी निर्माण की भूमिका क्या है

भारत में पूॅजी निर्माण की दर को बढाने के उपाय/ bharat mein pooaijee nirmaan kee dar ko badhaane ke upaay

1 उचित मूल्‍य प्रणाली -

   भारत में ऐसा मूल्‍य को अपनाया चाहिए जिससे वस्‍तु को कम मूल्‍य में प्राप्‍त कर सके और उत्‍पादन करने वाली कम्‍पनीयों को भी पर्याप्‍त लाभ हो सके। निवेशकों की निवेश करने में प्रतिकूल प्रभाव पडेगा।   

2 अनुत्‍पादन निवेश पर रोक लगाना -

भारत में दिन प्रतिदिन जनसंख्‍या में वृद्धि हो रही है जिसके चलते भवन, भू‍म‍ि आदि के कीमतो पर अधिक वृद्धि हो रही है।   और जो लोग पूॅजी का निवेश करते थे वह भी इसी कार्य में प्राथ‍म‍िक दे रहे है । अत: सरकार को ऐसी प्रणाली का गठन करे जिससे की पूॅूॅूजी का प्रवाह निवेश की ओर बढ़े । 

 3 -उचित कर ढ़ाचा -

उपभोक्‍ता से कर लेने के लिए इस प्रकार प्रणाली बनाया जाना चाहिए जिससे एक ओर अनावश्‍यक चीजे व आरामदायक वस्‍तु को कम उपभोग किया जाना चाहिए जिससे पूॅजी बचत में प्रोत्‍साहन मिलेगी।   

 4 -श्रम का हस्‍तांतरण -

भारत में ज्‍यादातर लोग कृषि पर आधारित होते है यदि इसी उपभोग को कृषि के क्षेत्र से हटाकर भवन निर्माण,सडक निर्माण , सिचाई परियोजना जैसे योजनाओं पर लगा दिया जाये । जिससे अधिक पूजी का निर्माण होगा।

 5 -अनावश्‍यक नियंत्रण की समाप्ति -

नयी उपक्रम की स्‍थापना हेतु अनेक प्रकार के नियमें व औपचारिकताओं का पालन करना पड़ता है । अत: सरकार द्वारा लाइसेन्‍स नीत‍ि को सरल बनाना चाहिए इससे पूजी निर्माण में बढ़ावा म‍िलता है । 


पूंजी निर्माण का महत्व / punji nirman ka mahatva

1आधारित संरचना में विकास 

आर्थिक विकास में आधारित संरचना जैसे परिवहन, विद्युत, संचार आदि का होना अति आवश्‍यक है जिससे सूचनाओं एवं साधनो को  पूॅजी बढ़ाने में  भारी मात्रा में जरूरत होती है ।    

2तकनीकी में प्रगति -

वर्तमान समय में कारखानों एवं कृषि के क्षेत्र में उन्‍नती तभी सम्‍भव जब आधुनिक तकनीकी एवं यंत्रों का प्रयोग किया जा सके । जिससे बडे मात्रा में उत्‍पादन हो सके और पूजी निर्माण में बडा निवेश का योगदान हो । 

3 राष्‍ट्रीय आय में वृद्धि करना  -

देश के अन्‍दर नये- नये को उद्योगों का स्‍थापित करना जिससे की लोगों की बेरोजगारी भी दूर हो  तथा उन उद्योगों को आधुनिक तकनीको द्वारा चलना जिससे की उत्‍पादकता के साथ देश के विकास में सहायक हो सके ।  

4 विदेशी भुगतान की समस्‍या समाधान करना -

एसे देश जो अल्‍प विकसित है प्राय: वह प्राथ‍म‍िक वस्‍तु को निर्यात करते है और मशीनो, नि‍म‍ित वस्‍तुओं का आयात करता है । जिससे की भुगतान असंतुलन का करण बना रहता है । इसके समाधान के लिए वह स्‍वयं वस्‍तुओं का निर्माण करें जिससे की भुगतान संतुलन की समस्‍या का समाधान हो सके ।

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