arthik vikas ka mahatva

मानव विकास को प्रभावित करने वाले कारक

manav vikas ko prabhavit karne wale karak

विकास को प्रभावित करने वाले कारक pdf

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं गैर-आर्थिक तत्वों की विवेचना कीजिए


आर्थिक विकास का महत्‍व- 

arthik vikas ka mahatva

वर्तमान समय में संसार की मुख्‍य समस्‍या आर्थिक रूप पिछडेपन और विषमताओं को कम करने की है। संसार की बड़ी जनसंख्‍या है वह निर्धनता,बेकारी, निम्‍न स्तर जीवन, भूख, शोषण एवं बीमारी आदि की समस्‍याओं से भयंकर रूप से लड़ रहीं है। एक प्रकार से कुछ देश अत्‍यधिक विकसित है तो दूसरी प्रकार से अनेक देश ऐसे है जो अत्‍यधिक‍पिछड़ापन की अवस्‍था में हैं। इन पिछडेंपन के देशों का मुख्‍य उद्देश्‍य है देश को जल्‍दी से जल्‍दी विकास‍विकास  करना है। आर्थिक विकास होने के कारण प्रति व्‍यक्ति आय बढे़गी जिससे वस्‍तुओं की मॉंग बढ़ेगी एवं परिणाम स्‍वरूप उत्‍पादन के साथ विनियोग बढे़गा दूसरे शब्‍दों पूँजी निर्माण दर बढ़ेगी । इस तरह आर्थिक विकास का प्रवाह निरन्‍तर चलता रहेगा। 

1) जीवन स्‍तर में वृद्धि - 

आर्थिक विकास से आशय यह है कि राष्‍ट्रीय आय तथा प्रति व्‍यक्ति आय में वृद्धि से है । अत: आर्थिक विकास होने पर उत्‍पादन के साथ मौद्रिक आय में वृद्धि होगी लोगों की क्रय करने की शक्ति बढ़ जायेगी और इनके जीवन स्‍तर में सुधार हो जायेगा । 

2) आर्थिक उपलब्‍धियॉं  -

आर्थिक व्‍यवस्‍था होने से अनेक प्रकार से लाभ प्राप्‍त होते है। जैसे - राष्‍ट्रीय उत्‍पादन में वृद्धि होना और राष्‍ट्रीय आय में उचित प्रकार से वितरण हो जाता है। ओर प्राकृतिक संसाधनों का कुशलता से उपयोग होने लगता है जिससे उत्‍पत्ति के साधनों का सही तरीके एवं कुशलता से वितरण होता है। जिससे पूँजी का निर्माण बढ जाती है। 

3) व्‍यक्ति के चुनाव क्षेत्र का विस्‍तार - 

आर्थिक विकास की प्रक्रिया में नये- नये क्षेत्रों का बहुत तेजी से विकास होता है। इसके परिणामस्‍वरूप हि लोगों को अपनी प्रसंद तथा योग्‍यता के अनुसार कार्य  उपलब्‍ध होने लगता है। इससे उनकी कार्य करने की कुशलता बढ़ जाती है। 

4) आर्थिक विषमता में कमी होना - 

आर्थिक विकास में सामाजिक न्‍याय की दृष्टि से आर्थिक विषमता भी कम होने लगती है और नियोंजन में आर्थिक विषमता में कोई महत्‍व नहीं दिया जाता है। 

5) नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा - 

नियोजन के अभाव में उद्योगपति व व्‍यवसायी वस्‍तुओं की कृत्रिम कमी से उत्‍पन्‍न करके ऊची कीमतों के द्वारा उपभोक्‍ताओं का शोषण करते है । आर्थिक विकास हेतु नियोजन को अपनाने से हि यह दोष को समाप्‍त हो जाता है। केन्‍द्रीय नियोजन सत्ता का उत्‍पादन तथा वितरण पर पूर्ण नियंत्रण होता है। जिसके परिणामस्‍वरूप सभी वर्गों को आर्थिक सुरक्षा प्राप्‍त होती है। 

6) मानवतावाद का उदय -

आर्थिक विकास के परिणामस्‍वरूप समाज में शोषण, उत्‍पीडन, वैमनस्‍य आदि के स्‍थान पर स्‍नेह, सहयोग, सदभावना तथा आत्‍मीयता का उदय होने लगता है। इसका अभाव होता है वहॉ अमानवता का जन्‍म होता है। वहॉं सम्‍पन्‍नता मानवता की उत्‍प्रेरक शक्ति होने लगती है। 

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं गैर-आर्थिक तत्वों की विवेचना कीजिए

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाला कारक कौन सा है?

आर्थिक विकास के घटक - 

1) आर्थिक घटक - 

    i) प्राकृतिक साधन - प्र‍कृतिक संसाधनों से अभिप्राय यह है कि प्रकृति के द्वारा दिया गया नि: शुल्‍क उपहारों से होता है जैसे कि - भूमि, वन-सम्‍पदा, जल खनिज सम्‍पदा, जलवायु इन सभी को प्रकृतिक साधनों के अन्‍तर्गत शामिल किया जाता है। यद्यपि प्राकृतिक साधनों की मात्रा में विकास की गारण्‍टी नहीं है तदपि प्राकृतिक साधन से किसी भी देश के आर्थिक विकास की गति की मात्रा एवं सीमा को अवश्‍य निर्धारित करते है अन्‍य बातों के समान रहने से जिस देश में प्राकृतिक साधन जितने ज्‍यादा होंगें वहॉं पर विकास की संभावना उतनी ही अधिक होती है। ध्‍यान रहे प्राकृतिक साधनों का उपलब्‍ध होने के साथ - साथ यह ज्‍यादा आवश्‍यक है कि इन साधनों का कुशलता पूर्वक उपयोग हो तथा अन्‍य पूरक साधनों की कमी न हो । 

ii) पूँजी निर्माण - 

सम्भवत: विनियोग के लिए घरेलू बचत की कमी को आर्थिक विकास के रास्‍ता को सबसे बड़ा बाधा है । जो जीवन के स्‍तर को स्‍थायी वृद्धि उत्‍पादन क्षमता में वृद्धि पर निर्भर करती है तथा उत्‍पादन की वृद्धि ही आर्थिक विकास के इतिहास का अध्‍ययन इस  बात का प्रमाण है कि वहॉ पूँजी - निर्माण की दर में वृ‍द्धि ही आर्थिक विकास की कुँजी है । जो पूँजी की उपलब्‍धता एक सीमा तक श्रम एवं प्राकृतिक साधनों की कमी को दूर कर देती है। 

iii) तकनीकी - 

आर्थिक विकास में तकनीकी एवं उसका विकास सबसे ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण स्थान रखता है। तकनीकी विकास संरचनात्‍मक का परिवर्तन करके तीव्रता के साथ आर्थिक विकास को सम्‍भव बनाता है। प्राकृतिक साधनों का विदोहन, श्रम की कार्य करने की कुशलता, मशीनरी व अन्‍य पूँजी उपकरणों की उत्‍पादकता तकनीकी विकास पर ही निर्भर करती है। उच्‍च तकनीकी के प्रयोग से ही वस्‍तुओं की मात्रा तथा किस्‍म में सुधार किया जा सकता है। तथा कम लागत पर ही अधिकतम उत्‍पादन करने की सम्‍भवना बन जाती है। 

iv) साहस एवं नवप्रवर्तन - 

उच्‍च तकनीकी के पूर्ण उपयोग और आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए अल्‍प विकसित देशों में ऐसे साहस की जरूरत होती है। जो नवप्रवर्तन में विश्‍वास रखता है। और वास्‍तव में साहस तकनीकी विकास तथा आर्थिक विकास के लिए उत्‍प्रेरक का कार्य करता है। नये वैज्ञानिक ज्ञान की आर्थिक भावनाओं को ज्ञात करके उसे उत्‍पादक कार्यों का प्रयोग में लाने का कार्य साहसी ही करता है। 

रिचार्ड टी. गिल के अनुसार - तकनीकी ज्ञान आर्थिक दृष्टिकोण के साथ प्रभावकारी तभी होता है जबकि इसका नवप्रवर्तन के रूप में उपयोग किया जाय । नवप्रवर्तन की पहल समाज के साहसी तथा उद्यमकर्ता ही करते है। 

v) जनसंख्‍या की वृद्धि - 

जनसंख्‍या में वृद्धि से आर्थिक विकास का महत्‍वपूर्ण निर्धारक है। जनसंख्‍या के महत्‍व का बताते हुए प्रो. व्हिपल ने लिखा है एक देश की वास्‍तविक सम्‍पत्ति उसकी भूमि, जल वनों, खानों, पशु सम्‍पत्ति या डालरों मे निहित न होकर उस देश की धनी और प्रसन्‍न आदमी, औरत एवं बच्चों में निहित होती है। कोई भी देश प्राकृतिक दृष्टि से कितना ही धनी क्‍यों न हो, उनके उपयोग के लिए आवश्‍यक मानवीय श्रम का अभाव में उसका आर्थिक विकास सम्‍भव नहीं है। यदि जनसंख्‍या बढ़ने से देश को अनेक लाभ प्राप्‍त होते हैं। जैसे इससे श्रम-शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है। इसके साथ हि बाजार का विस्‍तार होता है। तथ विशिष्‍टीकरण एवं बड़े पैमाने की उत्‍पादन प्रणाली का प्रयोग करना सम्‍भव हो जाता है। परन्‍तु जनसंख्‍या ज्‍यादा बढ़ने पर आर्थिक विकास के मार्ग में हमेशा बाधा बन जाती है। अत: जनसख्‍या वृद्धि आर्थिक साधनों के अनुकूल होनी चाहिए । इसके लिए उचित नियोजन करने की आवश्‍यकता है। ध्‍यान रहे कि आर्थिक विकास हेतु जनसंख्‍या गुणात्‍मक दृष्टि से भी श्रेष्‍ठ होनी चाहिए। 

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले गैर-आर्थिक घटक हैं

आर्थिक विकास का गैर आर्थिक कारक कौन सा है?

2) गैर आर्थिक घटक -

i) सामाजिक घटक - किसी देश का सामाजिक संरचना एवं मान्‍यताऍं वहां के आर्थिक विकास में अपना योगदान दिया करती है । यदि किसी देश के लोग रूढि़वादी है अर्थात परम्‍परावादी ढंग से ही उत्‍पादन करते है तथा नवीन परिवर्तन को स्‍वीकार नहीं करते है तो वह देश निश्चित रूप से अविकसित रहेगा। इसके उल्‍टा या विपरीत यदि किसी समाज प्रगतिशील है अर्थात वैज्ञानिक तकनीक तथा नवीन परिवर्तन को स्‍वीकार करने की प्रवृति रखता है तो वह देश निश्चित रूप से आर्थिक विकास कर लेगा । इसी प्रकार जो राष्‍ट्रों में भौतिक प्रगति के प्रति जागरूकता होती है तथा सभी कार्यों को सम्‍मान दिया जाता है। वह सामाजिक दृष्टि के आर्थिक विकास के लिए उपयुक्‍त होते है। 

ii) जनाकिकीय घटक -

यदि देश में जनसंख्‍या का बाहुल्‍य है तथा लोगों की प्रवृति अधिक सन्‍तान को रखने की है । तो उस देश का आर्थिक विकास धीमें गति से होता है। ऐसी स्थिति में पूँजी गहन तकनीकी का प्रयोग सम्‍भव नहीं होता है। क्‍योंकि यहॉं प्रति व्‍यक्ति आय कम तथा उपभोग काने की प्रवृति ज्‍यादा होने के कारण बचत की मात्रा बहुत कम होती है। इसके विपरीत कम जनसंख्‍या की स्थिति में आर्थिक विकास के लिए अधिक साधन उपलब्‍ध हो जाते है जिससे गहन पूजी  तकनीकी का प्रयोग का सम्‍भव हो जाता है। विकसित देशों की प्रौद्योगिकी तथा विशेषज्ञों का आयात सम्‍भव होता है जिसके फलस्‍वरूप आर्थिक विकास की गति अधिक तीव्र से होती है। 

iii) राजनीतिक एवं प्रशासनिक घटक - 

राजनीतिक स्थिरता तथा स्‍वच्‍छ प्रशासन किसी भी देश के आर्थिक विकास में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिस देश में राजनैतिक स्थिरता है वहा लोगप्रिय सरकार है तथा प्रशासन कर्मठ एव कुशल है वहॉं आर्थिक विकास की गति निश्चित रूप से तीव्र होगी । 

iv) धार्मिक घटक - 

किसी देश की धार्मिक भावनाएँ भी वहॉं के आर्थिक विकास को प्रभावित करती है। जैसे - भारत में हिन्‍दू धर्म भौतिक समृद्धि की अपेक्षा आध्‍यात्मिक विकास पर जोर देता है। जो देश के आर्थिक विकास में बाधक होता है। उसके विपरीत यूरोप में प्रोटेस्‍टेंट धर्म व्‍यावसायिक प्रवृति को प्रोत्‍साहित करता है। जिससे आर्थिक विकास में मदद मिलती है। 

 

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