रोजगार का परंपरावादी सिद्धांत क्या है?
रोजगार के दो सिद्धांत क्या हैं?
रोजगार के परंपरावादी सिद्धांत
कीन्स का रोजगार सिद्धांत
आय और रोजगार का सिद्धांत
रोजगार का परंपरावादी सिद्धांत क्या है
रोजगार का परम्परावादी सिद्धांत
रोजगार का सिद्धान्त उन सभी तत्वों की विस्तार उचित पूर्वक करता है । जिससे अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार या साधनों में पूर्ण तरीके से निर्धारण होता है। सर्व प्रथम रोजगार सिद्धान्त को प्रतिपादित करने वाले अर्थशास्त्रियों को परम्परावादी या फिर क्लासीकल के नाम से जाना जाता है । जैसे - एडम स्मिथ , ज.एस. मिल, जे. बी. से, रिकार्डो, मार्शल, पीगू, आदि। इन सभी अर्थशास्त्रयों के विचारों के सम्मिश्रण करने से रोजगार केे परम्परावादी सिंद्धान्त की रचना हुई है ।
इस सिंद्धांन्त के प्रमुख विशेषता
1) यह पूर्ण रोजगार जे.बी.से. के बाजार नियम से आधारित है ।
2) पूर्ण प्रतियोंगिता तथा पूजीवादी अर्थव्यवस्था को यह स्थिति मानकर चलता है।
3) पीगू के शब्दों के अनुसार - मजदूरियों की परिवर्तनशीलता या कि लोचशीलता पूर्ण रोजगार को स्थापित करती चलती है।
4) ब्याज के दर की लोचशीलता , निवेश तथा बचत में समानता लाती है । और इस प्रकार पूर्ण रोजगार की अवस्था लाने की सहायक होती है ।
5) वस्तुओ की कीमतों में लाेचशीलता भी पूर्ण रोजगार को बनाये रखने में सहायक होती है ।
6) यह भी मान लिया जाता है कि अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार की अवस्था में रखती है ।
कीन्स के रोजगार सिद्धांत को समझाइए pdf
लार्ड जे. एम. किन्स द्वारा प्रतिपादित आय एवं रोजगार सिद्धांत वर्तमान आर्थिक सिद्धान्तों के अध्ययन में अधिक महत्वपूर्ण स्थान रखते है । प्रो. किन्स ने अपनी पूस्तक General Theory of Emplyment, Interest and Money में यह स्पष्ट किया है कि देश में रोजगार की मात्रा प्रभाव पूर्ण मॉग पर निर्भर करती है । प्रो. किन्स ऐसे विख्यात एवं प्रथम अर्थशास्त्री थे जो पूजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक शक्तियॉ स्वयंं पूर्ण रोजगार स्थापित कर देता है ।
प्रभाव पूर्ण मॉग से क्या आशय है -
प्रभावपूर्ण मॉग से आशय - डिलार्ड के शब्दों के अनुसार तर्क के आधार पर कीन्स के रोजगार सिद्धांत का प्रारम्भिक बिन्दू प्रभावपूर्ण मांग का सिद्धांत है। इसको सरल शब्दों में प्रभाव पूर्ण मॉग से अभिप्राय है कि वस्तु के खरीदने के सामर्थ से है। अर्थशास्त्री कीन्स के अनुसार रोजगार स्तर का निर्धारण उपभोग तथा विनियोग की वस्तुओं के लिए प्रभावपूर्ण मांग के स्थिति को दिखाता है। इसके विपरीत में प्रभावपूर्ण मॉंग मे कमी होने के कारण ही बेरोजगारी उत्पन्न होती है।
प्रभाव पूर्ण मॉंग के निर्धारक तत्व
कुल मॉंग के फलन - कुल मॉँग फलन की मुन्द्रा उन अलग अलग राशियाें की अनुसूची होती है । जिन्हे उद्यमी रोजगार अलग-अलग स्तरों पर अपने वस्तु की उत्पादन की विक्री अवश्य मिलने की आशा रखते है।
कुल पुर्ति के फलन - समग्र का पूर्ति का फलन द्रव्य उन अलग-अलग राशियों की अनुसूची होता है । जो उद्यमियों को रोजगार के अलग-अलग स्तरों पर उत्पादन की बिक्री अवश्य मिलनी चाहिए ।
प्रोफेसर कीन्स के सिद्धांंतके सैद्धांंतिक तथा व्यावहारिक महत्व की व्याख्या कीजिए -
प्रो. किन्स द्वारा दिया गया सिद्धांत सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
सैद्धांतिक महत्व -
प्रो. किन्स के सैद्धांतिक महत्व का वर्णन निम्न शीर्षकों के आधार पर स्पष्ट किया गया है ।
1) सामान्य सिद्धांत - प्रो. किन्स द्वारा दिया गया सिद्धांत अर्थव्यवस्था के सभी परिस्थितियों में लागू होता है।
2) अल्प रोजगार सन्तुलन की व्याख्या - कीन्स ने अपने इस सिद्धांत में यह सिद्ध किया है कि पूर्ण रोजगार के पहले हि अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
3) आर्थिक समष्टि भाव - रोजगार के सिंद्धांत का प्रतिपादन करते हुए प्रो. किन्स ने समष्टि भावात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। जैसे - आय, रोजगार, उत्पादन , बचत, विनियोग, उपभोग आदि राष्ट्रीय समग्रों में व्यक्त करता है।
4) विनियोग का महत्व - प्रो. किंस के रोजगार सिद्धांंत में वस्तु विनियोग के व्यय को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । यह रोजगार के दो प्रमुख निर्धारको का उपभोग तथा विनियोग में से उपभोग को अल्पकाल में स्थिर मानते हुए प्रो; किन्स ने निष्कर्ष निकाला है कि विनियोग के उच्चवाचन के कारण रोजगार में उतार चढाव होता रहता है।
5) गुणक सिंद्धांत की व्याख्या - प्रो; किन्स के द्वारा दिया गया गुणक सिद्धांत को एक नय रूप दिया है जो कि विनियोग और आय के बीच के संबंध को दिखाता है। जिसके कारण रोजगार का महत्वपूर्ण स्थान रहता है।
6) तरलता अधिमान - यह सिद्धांत व्यक्ति और व्यवसाय को व्यावसायिक सतर्कताएवं सत्ता उद्देश्य से अपनी आय का नगद रूप में रखना चाहिए तरलता अधिगम मेंं ब्याज के दर सिद्धांत केे मॉंग के पक्ष को दर्शाता है।
7) गतिशील तत्वों पर आधारित - कीन्स के सिद्धांत गतिशील तत्वों पर आधारित है प्रो. किंस ने यह स्पष्ट किया है कि विनियोग में उच्चावचन होने के कारण अस्थिरता है क्योंकि विनियोग भविष्य काल में किसी कारणों पर निर्भर रहता है जिसमें गतिशीलता होने के कारण परिवर्तन होतेे रहते है।
व्यावहारिक महत्व -
1) अर्थव्यवस्था में लागू होना - प्रो. किंस के रोजगार सिद्धांत को विस्तार स्वीकृति मिली और उसेे कई देशों की सरकारों ने यह लागू किया। किंस की विचार धारा आर्थिक नीति से संबंधित है तथा इसे बहुत से राजनीतिज्ञों ने भी माना है।
2) मजदूरी की नीति - यह मान्यता प्रो. पींगू द्वारा दी थी मजदूरी में कटौती करके रोजगार में वृद्धि की जा सकती हैै। परन्तू प्रो. किंस ने इसका विरोध किया था और यह बताया था कि अगर ऐसा होता है तो मजदूरी कम करने से आय में कमी होगी और इसका प्रभाव पूर्ण मांंगकम हो जायेगी तथा उत्पादन घटेगा और रोजगार हतोत्साहित होगा।
3) राजकीय हस्तक्षेप - अपने रोजगार के सिद्धांत की सहायता से प्रो किंस ने यह स्पष्ट किया है कि आर्थिक क्षेत्रों में राजकी हस्तक्षेप अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि पूजीवादी अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार की दशा को स्वत: हि उत्पन्न नही कर सकती हैा
4) जे.बी. से के बाजार नियम का विरोध - कीन्स ने जे.बी. से के बाजार नियम विरोध करके बताया कि पूूूर्ति स्वयं अपनी मॉग को पैदा कर लेती है। कीन्स यह मानते है कि आय में से एक भाग बचा लिया जाता है जिससे की मॉग में कमी हो जाती है और बेरोजगारी फैल जाती है।
कीन्स के सिद्धांत की अलोचना बताइए
1) सामान्य सिद्धांत नही - प्रो. किन्स द्वारा दिया गया सिद्धांत कोई सामान्य सिद्धांत नही है क्योंकि यही प्रत्येक जगह पर एवं हर समय पर लागू नहीं होता है । यह सिद्धांत विकसित देशों पर लागू होता है और अल्पविकसित देशों पर नही लागू होता है ।
2) बेरोजगारी का हल विस्तृत हल नही- प्रो. किन्स ने केवल चक्रीय बेरोजगारी पर बल दिया है परन्तु तकनीकी ओर प्रतिरूद्ध या कि अस्थायी बेरोजगारी का ध्यान नहीं दिया। प्रो. क्लीन के शब्दों के अनुसार कीन्स का सिद्धांत उचित रोजगार पर भी ध्यान नहीं देता है।
3) केवल मेक्रो दृष्टि कोण एकांगी - प्रो. किन्स ने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन केवल मेक्रो की दृष्टिकोण के आधार पर किया है । जो कि सही नहीं है । आर्थिक विश्लेषण में समष्टि एवं व्यष्टि दोनो का विवेचना करना आवश्यक है।
4) विनियोग पर अधिक बल - रोजगार के स्तर को उपभोग करने की प्रवृति पर भी प्रभाव पडता है । जबकि किन्स ने इसे कम समय के लिए स्थिर मान लिया और रोजगार के स्तर को निर्धारण में केवन विनियोग के प्रवृति को अधिक महत्व दिया है।
5) अवास्तविक मान्यताओ पर आधारित - प्रो. किन्स का जो सिद्धांत है वह पूर्ण प्रतियोगिता पर आधारित है जो कि अवास्तविक है । और साथ हि बन्द अर्थव्यवस्था पर भी आधारित है क्योंकि आयात निर्यात के प्रभावों का समावेश नहीं है। विदेशी व्यापार पर गुणक का रोजगार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पडता है । जो कि प्रो. किन्स ने इसकी विवेचना नहीं की है।
6) त्वरक सिद्धांत का समावेश नही - प्रो.किन्स ने केवल गुणक के प्रभावों की व्याख्या की है जबकि गुणक-त्वरक की परस्पर क्रिया द्वारा ही आर्थिक उतार चढाव होते रहते है।
7) प्रभावपूूर्ण मॉग और रोजगार की सीधा सम्बंध मान लना उचित नहीं है -
प्रो. किन्स ने प्रभाव पूर्ण मॉग तथा रोजगार स्तर के मध्य क्रियात्मक सम्बंध को स्वीकार किया है । हेजलिट के शब्दो के अनुसार - प्रभाव पूर्ण मॉग और रोजगारके स्तर में कोई क्रियात्मक संबंध नही होता। वास्तव में रोजगार की मात्रा पर मुद्रा पूर्ति कीमतो और मजदूरियों की लोच तथा उनमें पारस्परिक सम्बंध को दर्शाता है।
8) प्रो. किंंस का ब्याज दर का जो सिद्धांत है वह अनिश्चित है - किन्स के शब्दो के अनुसार ब्याज की वह मुद्रा है जो नकदी रखने वाले को नकदी या तरलता का परित्याग करने के लिए प्राप्त होती है । इस प्रकार से ब्याज का तरलता अधिमान- सिद्धांत अनिश्चित है।
रोजगार के परम्परावादी सिद्धांत तथा कीन्स के सिद्धांत में पाॅच अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
1) पूर्ण रोजगार की मान्यता - परम्परावदी सिद्धांत जो है पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित था । जबकि प्रो. किन्स ने बताया की वास्तवित स्थति यह है कि पूर्ण रोजगार कभी नही होता उसमें कुछ कमी आवश्य होती है । इस स्थिति को कीन्स ने इसे न्यूनतम रोजगार सन्तुलन की संज्ञा दी है।
2) दीर्घकालीन मान्यता - परम्परावादी अर्थशास्त्री लम्बे समय तक सन्तुलन पर बल देते थे। इसके विपरीत कीन्स ने कम समय में सन्तुलन का अधिक महत्व दिया है।
3) सरकरी हस्तक्षेप - प्रो. किन्स अर्थव्यवस्था के सरकारी हस्तक्षेप के पक्ष में रहते थे। उनका यह मानना था कि सरकारी नीतियो के कियान्वयन के लिए सरकारी नियंत्रण आवश्यक होता है जबकि परम्परावादी अर्थशास्त्री स्वतंत्र अर्थव्यवस्था पर समर्थक थे।
4) बचत निवेश की व्याख्या - प्रो. किन्स का बचत एवं निेश के प्रति दृष्टिकोण परम्परावादी अर्थशास्त्रीयों से अलग है जो परम्परावादी अर्थशास्त्री है बचत से प्रारम्भ करते हुए निवेश में आते है । जबकि प्रो. किन्स निवेश से प्रारम्भ करके बचत पर आते है।
5) सामान्य सिद्धांत - जो प्रो. किन्स द्वारा रोजगार पर जो सिद्धांत प्रस्तुत किया है वह सामान्य सिद्धांत के अन्तर्गत आता है । जबकि सभी अर्थशास्त्रीयों पर समान रूप से लागू होता है । जबकि जो परम्परावादी सिद्धांत है वह विशिष्ट सिद्धांत के अन्तर्गत लागू होता है।