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जनसंख्या का अर्थ -
एक देश की वास्तव में जनसंख्या परिसम्पत्ति होती है। किसी भी देश की आर्थिक विकास वहॉं की जनसंख्या से सम्बन्धित बातों पर निर्भर करती है। जैसे - जनसंख्या ही श्रम - शक्ति का स्त्रोत है तथा उत्पादन का एक आश्यक क्रिया के साथ एक सक्रिय साधन भी है। श्रम ही उत्पादन के अन्य साधनों को संगठित करके कार्य को सम्भव बनाता हैै। मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उत्पादन किया जाता है।
भारत की जनसंख्या वृद्धि दर । भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2011
जनसंख्या में वृद्धि दर का स्वरूप -
जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में भारत का स्थान चीन के बाद दूसरा है । 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121.06 करोड़ है। यह विश्व की कुल जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत भाग है, और जबकि भारत के पास विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत भाग है। भारत में सर्वप्रथम जनगणना 1872 में की गयी । इसके बाद 1881 से नियमित रूप से प्रत्येक 10 वर्ष के बाद जनगणना की जाती है।
जन्म दर क्या है उदाहरण सहित? /मृत्यु दर का क्या अर्थ है? / जन्म दर और मृत्यु दर कितनी है?
जन्म दर क्या है -
जन्म दर से आशय प्रति एक हजार जनसंख्या पर प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या से होता है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण है जन्म दर का ऊचा होना ।
मृत्यु दर क्या है
मृत्यु दर से आशय है प्रति एक हजार जनसंख्या पर प्रतिवर्ष मृत्यु होने वालों की संख्या से होता हैै।
वयमूलक रचना -
वयमूलक रचना से आशय यह है कि कुल जनसंख्या के वितरण से होता है। इसमें आयु के अनुसार हि जनसंख्या की रचना का विशेष महत्व होता है। जनसंख्या की कार्य करने की आयु 15 से 59 वर्ष तक मानी जाती है। इस आधार पर भारत में 1990 में 0-14 तक के उम्र के बच्चों का अनुपात 36 प्रतिशत 15-59 वर्ष तक आयु वर्ग के व्यक्तियों का अनुपात 57.5 प्रतिशत तथा 60 वर्ष के ऊपर के व्यक्तियों का अनुपात 6.5 प्रतिशत है। इस प्रकार से भारत में 42.5 प्रतिशत लोग स्वयं काम नही करते है और कार्यशील जनसंख्या पर आधारित है। वर्ष 2011 में 15-59 वर्ष की आयु में 67.2 करोड़ की जनसंख्या भारत में थी।
लिंग मूलक रचना -
लिंग मूलक रचना से आशय कुल जनसंख्या में स्त्रियों - पुरूषों के अनुपात से होता है। 2001 में प्रति हजार पुरूषों पर स्त्रियों की संख्या 033 थी जो बढ़कर 2011 में 940 हो गयी है।
भारत में पुरूषों की अपेक्षा में स्त्रियों की संख्या कम होने के मुख्य कारण है -
1) लड़कियों की देखभाल अपेक्षाकृृत कम होने के कारण बाल्यकाल तथा प्रसवकाल में उनकी मृृृृत्यु हो जाती है। 2) पुरूष शिशु के प्रति अनुराग अधिक है।
3) कम उम्र में हि मातृत्व का भार वहन करने पर स्त्रियों की मृत्यु दर ऊँची होती है।
ग्रामीण तथा शहरी जनसंख्या -
भारत देश में कुल जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेेत्र में रहता है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का 83.4 करोड़ जनसंख्या गॉवों में रहती हैै । और शहरों में 37.7 करोड़ निवास करती है। कुल जनसंख्या का यह क्रमश: 68.8 प्रतिशत तथा 31.1 प्रतिशत भाग है। भारत में शहरी जनसंख्या निरन्तर बढ रही है।
सम्भावित आयु -
किसी भी देश के निवासी जन्म के समय जितने समय जीवित रहने की आशा कर सकते है। वह वहॉं की औसत और सम्भावित आयुु कहलाती है। सम्भावित आयु का आर्थिक विकास प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। किसी भी देश में वहॉं के निवास कर रही जनसंख्या की शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य आदि पर किया गया खर्च तभी लाभप्रद होगा जबकि ऐसे सवस्थ्य एवं प्रशिक्षित व्यक्ति लम्बे समय तक जीवित रहकर देश के आर्थिक विकास में अपना योगदार दे।
जनसंख्या का घनत्व -
जनसंख्या घनत्व से आशय यह है कि किसी देश में रहने वाले व्यक्तियों की प्रति वर्ग किलोमीटर औसत संख्या से होता है। किसी देश की कुल जनसंख्या को वहॉं के कुल क्षेत्रफल से भाग देकर उस देश की जनसंख्या का घनत्व को मालूम किया जाता है। भारत का औसत घनत्व 2011 की जनगणना के अनुसार 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हैा देश का क्षेत्रफल स्थिर है परन्तु जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जिसके फलस्वरूप देश के औसत जन-घनत्व में तेजी से बढ़ रहीं है।
साक्षरता दर -
साक्षरता दर से अभिप्राय यह है कि जनसंख्या में उन व्यक्तियों के प्रतिशत से होता है जो कि 7 वर्ष या इससे ज्यादा के आयु है तथा किसी भाषा को समझकर पढ़-लिख सकते हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 64.83 प्रतिशत थी जो कि 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत गयी इनमें से पुरूषों की साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत तथा महिलाओं में 65.76 प्रतिशत है। किसी देश में शिक्षित जनसंख्या का अनुपात जितना ज्यादा होगा उस देश का आर्थिक व सामाजिक विकास उतना ही तेजी के साथ होता है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि या विस्फोट के दो प्रमुख कारण हैं-
(i) जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि तथा
(ii) प्रवसन ।
(1) जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धि जन्म दर व मृत्यु दर के अन्तराल (Gap) पर निर्भर करती है। दूसरे शब्दों में, जन्म दर ऊँची होने पर तथा मृत्यु दर नीची होने पर जनसंख्या में वृद्धि तेज हो जाती है तथा यह जनसंख्या विस्फोट की स्थिति को जन्म देती है।
भारत में ऊँची जन्म दर के प्रमुख कारण निम्नलिखित है-
ऊँची जन्म दर के कारण
1. विवाह की अनिवार्यता
2. छोटी उम्र में विवाह
3. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास
4. संयुक्त परिवार प्रणालो
5. लागत लाभ विश्लेषण
6. मातृत्व मृत्यु दर में कमी
7. परिवार नियोजन के तरीकों को न अपनाना
8. जलवायु ।
(अ) ऊँची जन्म दर के कारण -
(1) विवाह की अनिवार्यता - भारत में विवाह जहाँ एक सामाजिक बन्धन है वहाँ यह धार्मिक कर्तव्य भी समझा जाता है। माता-पिता अपनी सन्तान का विवाह करना अनिवार्य समझते हैं और अपने इस कर्त्तव्य से शीघ्र उऋण होना चाहते हैं। फलस्वरूप जनसंख्या में भी वृद्धि होती है।
(2) छोटी उम्र में विवाह- भारत में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह छोटी उम्र में ही हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप सन्तानोत्पत्ति अवधि लम्बी हो जाती है तथा अधिक लेते हैं। बच्चे जन्म
(3) अशिक्षा एवं अन्धविश्वास - भारत की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। यहाँ के लोग 'दूधों नहाओ और पूतों फलो' के सिद्धान्त में विश्वास रखते हैं। चच्यात है। यही भगवान की देन मानते हैं और यह समझते हैं कि पुत्र के पिना नरक की प्राप्ति होती है जिसक परिणामस्वरूप जनसंख्या बढ़ती जाती है।
(4) संयुक्त परिवार प्रणाली - भारत में अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित है। अतः बच्चों के जन्म से लेकर बड़े होने तक उनका पालन-पोषण करना बहुत कठिन नहीं होता है। फलस्वरूप कम बच्चे पैदा करने के प्रति मोह कम होता है। इसके अतिरिक्त सामाजिक सुरक्षा सेवाओं के अभाव में यहाँ लोग बच्चों को अपने बुढ़ापे का सहारा समझते हैं और यह स्वाभाविक भी है।
(5) लागत लाभ विश्लेषण - भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग बहुत गरीब है। गरीब लोगों का कोई निश्चित जीवन स्तर नहीं होता है और न उनके बच्चों के पालन-पोषण, शिक्षा आदि पर कोई विशेष लागत बैठती है। अतः अधिक बच्चों का होना उनके जीवन-स्तर पर कोई विशेष कुप्रभाव नहीं डालता है। इसके विपरीत इनके बच्चे छोटी उम्र में ही कमाना शुरू कर देते हैं और इनके लिए अधिक बच्चों का होना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बन जाता है।
(6) मातृत्व मृत्यु दर में कमी - स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के कारण शिशु के जन्म के समय होने वाली माताओं की मृत्यु दर में कमी हो गयी है जिसके परिणामस्वरूप वह अधिक
बच्चों को जन्म देने में समर्थ हो गयी हैं।
(7) परिवार नियोजन के तरीकों को न अपनाना - भारत में विवाहित जीवनकाल में परिवार नियोजन के तरीकों का बहुत कम सहारा लिया जाता है। जनसाधारण को न तो इसकी बाहुत अधिक जानकारी है और न ही लोगों में परिवार नियोजन के तरीकों का सहारा लेने को तेज है समुचित तत्परता व प्रेरणा । फलस्वरूप जनन क्षमता का अनियन्त्रित रूप से उपयोग होता है और बन्म दर ऊँची हो जाती है।
(8) जलवायु - भारत एक उष्ण जलवायु वाला देश है। ऐसी जलवायु में जनन क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है तथा सन्तानोत्पत्ति की अवधि भी लम्बी होती है।
(ब) मृत्यु दर में कमी होने के कारण-
भारत में मृत्यु दर में तेजी से कमी होने के मुख कारण निम्नलिखित हैं-
मृत्यु दर में कमी होने के कारण
1. चिकित्सा विज्ञान का विकास
2. कृषि का विकास
3. भण्डारण तथा यातायात के साधनों का विकास
4. जीवन स्तर तथा शिक्षा में वृद्धि
5. राष्ट्रीय सरकार की स्थापना।
(1) चिकित्सा विज्ञान का विकास-चिकित्सा विज्ञान में नवीन खोजों के परिणामस्वरूप प्लेग, हैजा, इन्फ्लूएन्जा जैसी महामारियों पर विजय प्राप्त कर ली गयी है जिसके फलस्वरूप मृत्यु दर गिरी है।
(2) कृषि का विकास-शोध कार्यों को प्रोत्साहन तथा कृषि विकास परियोजनाओं को अमल में लाकर खाद्यान्नों की प्रति हैक्टेयर उपज में तिगुनी-चौगुनी वृद्धि हुई है। फलस्वरूप खाद्यान्न की कमी से होने वाली मृत्यु अब समाप्त हो गयी है।
(3) भण्डारण तथा यातायात के साधनों का विकास-स्वतंत्रता के पश्चात् खाद्यान उत्पादन बढ़ा है, वहाँ भण्डारण क्षमता में भी बहुत वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त यातायात के साधनों का विकास हुआ है। देश के आन्तरिक भागों में भी यातायात सुविधाएँ उपलब्ध करायी गयी हैं जिसके परिणामस्वरूप सूखा तथा बाढ़ के होने पर भी व्यक्तियों को अन्न उपलब्ध कराना सम्भव हो जाता है तथा इन प्रकोपों के कारण अनाज के अभाव में होने वाली मृत्यु अब नहीं होती।
(4) जीवन स्तर तथा शिक्षा में वृद्धि-पिछले कुछ समय से देश के आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप व्यक्तियों के जीवन-स्तर में वृद्धि हुई है जिससे मृत्यु दर कम हुई है। इसके अतिरिक्त शिक्षा में विस्तार हुआ है, लोगों में जागृति आयो है, फलस्वरूप मृत्यु-दर गिरी है।
(5) राष्ट्रीय सरकार की स्थापना-देश में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हुई है, जिसने अनेक कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया है। परिणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी आयी है।
(II) प्रवसन (Migration)
देश के विभाजन के उपरान्त भारत में पड़ोसी देशों से निरन्तर शरणार्थी आते रहे हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, तिब्बत आदि देशों से शरणार्थियों का आना आज भी जारी है। यह शरणार्थी यहाँ आकर बस गये हैं और जनगणना सूची में उनका नाम दर्ज हो गया है। इन शरणार्थियों तथा इनके परिवारों के आकार में वृद्धि के परिणामस्वरूप जनसंख्या में वृद्धि का स्तर तेजी से बढ़ा है।
जनसंख्या वृद्धि के परिणाम
जिन देशों में प्राकृतिक संसाधनों की तुलना में जनसंख्या कम है वहाँ उसमें वृद्धि ऐन विकास का परिचायक होती है, परन्तु यह स्थिति भारत में विद्यमान नहीं है। भारत में प्राकृतिक संसाधनों तथा भूमि संसाधनों की तुलना में जनसंख्या कहीं अधिक है। यहाँ पर जनसंख्या वृद्धि एक दायित्व या भार है जो कि यहाँ के आर्थिक विकास में बाधक है। भारत में जनसंख्या वृद्धि ए विस्फोट के प्रमुख परिणाम निम्नलिखित हैं-
जनसंख्या वृद्धि के परिणाम
1. पूँजी निर्माण की निम्न दर
2. खाद्यान्न पदार्थों की अधिक माँग
3. भूमि पर दबाव में वृद्धि
4. बेरोजगारी में वृद्धि
5. सामाजिक सेवाओं पर भार
6. निम्न जीवन स्तर
7. उच्च आश्रितता अनुपात
8. मूल्य-स्तर में वृद्धि।
(1) पूँजी-निर्माण की निम्न दर- जनसंख्या में वृद्धि भारत में पूँजी निर्माण की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि दर अधिक होने पर प्रति-व्यक्ति आय नीची रह जाती है जिससे बचतें कम होती हैं तथा पूँजी निर्माण को दर निम्न बनी रहती है।
(2) खाद्यान्न पदार्थों की अधिक माँग-भारत अभी तक खाद्यान्न की दृष्टि से आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। देश में जब भी मानसून साथ नहीं देता, हमें विदेशों से खाद्यान आयात करने पड़ते हैं। जनसंख्या में वृद्धि होने पर खाद्यान्नों की माँग और बढ़ जाती है औरइनका विदेशों से बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता हैं। परिणामस्वरूप देश की मुद्रा विदेशी खाद्यान्न आयातों पर ही व्यय हो जाती है तथा अन्य उत्पादक कार्यों में विनियोग के लिए इसकी कमी रह जाती है।
(3) भूमि पर दबाव में वृद्धि - भारत में जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप भूमि पर दबाव निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इससे भू-जोतों का अनार्थिक विभाजन हुआ है तथा कृषि उत्पादकता मैं कमी आयी है। सन् 1911 में भारत में प्रति व्यक्ति भू-जोत का आकार 1-11 एकड़ था जो कि 1993 में घटकर 0-25 एकड़ रह गया है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि भू-जोत का आकार छोटा होने पर कृषि का आधुनिकीकरण नहीं हो पाता है और आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है।
(4) बेरोजगारी में वृद्धि - भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारी की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। प्रत्येक योजना में बेरोजगारों की संख्या वढ़ रही है। सरकार जितने लोगों को रोजगार उपलब्ध कराती है उससे अधिक नये लोग बेरोजगारी की लाइन में आ जाते हैं। सभी लोगों को रोजगार देने के लिए काफी साधनों को जुटाने की आवश्यकता है जो कि देश में उपलब्ध नहीं है।
(5) सामाजिक सेवाओं पर भार-सरकार सामाजिक सेवाएँ; जैसे-चिकित्सा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जनता को निःशुल्क या नीची कीमत पर उपलब्ध कराती है। इन सेवाओं पर सरकार को पर्याप्त धनराशि व्यय करनी पड़ती है। जनसंख्या में वृद्धि होने पर सरकार को साधन अन्य क्षेत्रों से हटाकर इन सेवाओं पर लगाने पड़ते हैं।
(6) निम्न जीवन स्तर - जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने पर प्रति-व्यक्ति आय में वृद्धि धीमी हो जाती है। ऐसे में विनियोग का एक बड़ा भाग जनसंख्या के भरण-पोषण में लग जाता है तथा आर्थिक विकास के लिए विनियोग का एक छोटा-सा भाग ही बचता है।
(7) उच्च आश्रित अनुपात - जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने पर देश में बच्चों तथा वृद्ध व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। यह लोग कार्यशील जनसंख्या (15 वर्ष से 59 वर्ष तक की आयु) पर आश्रित है। इसका कारण यह है कि यह केवल खाने वाले होते हैं, उत्पादन करने वाले नहीं। आश्रित की संख्या बढ़ने पर देश पर भार बढ़ रहा है।
(8) मूल्य स्तर में वृद्धि - जनसंख्या के तेजी से बढ़ने पर वस्तुओं व सेवाओं की माँग बढ़ जाती है, जबकि उत्पादन में उतनी तेजी से वृद्धि नहीं हो पाती है, जिसके परिणामस्वरूप मूल्य स्तर में वृद्धि हो जाती है।
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